श्रेय
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श्री सारणेश्वर महादेव मेला सिरोही ज़िले का एक प्रमुख और ऐतिहासिक मेला है। यह मेला सिरोही शहर के पास स्थित श्री सारणेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित होता है, जो सिरणवा पहाड़ियों की पश्चिमी ढलान पर बसा है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे देवड़ा चौहान शासकों के कुलदेवता माने जाते हैं। इसकी किले जैसी बनावट और इतिहास इसे खास पहचान देती है।
हर साल हज़ारों श्रद्धालु यहाँ एकत्र होकर आस्था, परंपरा और उत्सव का मिलाजुला रंग देखते हैं।
इसी दिन सिरोही किला भी लोगों के लिए खोला जाता है – यह साल का एकमात्र दिन होता है जब आम लोग किले में प्रवेश कर सकते हैं।
मेले की खास बातें
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तारीख – यह मेला हर साल भाद्रपद शुक्ला एकादशी (हिंदू पंचांग अनुसार, अगस्त/सितंबर) को आयोजित होता है।
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देवासी (राबारी) समाज की भूमिका –
राबारी समाज ने सदियों पहले मंदिर की रक्षा की थी। इसी कारण मेले वाले दिन शाम के बाद केवल देवासी समाज के लोग ही परंपरागत वेशभूषा में मंदिर परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। -
पूजा-पाठ और परंपराएँ –
- विशेष शिवलिंग पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
- भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद मांगते हैं।
- लोकगीत, भजन, और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
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सरकारी महत्व –
- इस दिन अक्सर ज़िले में स्थानीय अवकाश घोषित होता है।
- पुलिस और प्रशासन द्वारा भगवान को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
मेले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यह मेला 13वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है:
- 1298 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण कर एक शिवलिंग को ले लिया था।
- रास्ते में सिरोही के राबारी समाज ने राव विजयराज देवड़ा के नेतृत्व में उसे वापस प्राप्त किया।
- इसके बाद उस पवित्र शिवलिंग को सर्नेश्वर मंदिर में स्थापित किया गया।
तभी से यह मंदिर और मेला सिरोही की आस्था और वीरता का प्रतीक बन गया।
सारांश
| पहलू | विवरण |
|---|---|
| मंदिर | श्री सारणेश्वर महादेव मंदिर – किले जैसी संरचना, देवड़ा चौहान शासकों का कुलदेवता |
| स्थान | सिरणवा पहाड़ी की पश्चिमी ढलान, सिरोही शहर के पास |
| तारीख | भाद्रपद शुक्ला एकादशी (अगस्त/सितंबर) |
| ऐतिहासिक घटना | खिलजी से शिवलिंग की रक्षा, राव विजयराज द्वारा मंदिर में स्थापना |
| मुख्य समाज | देवासी (राबारी) समाज – विशेष अधिकार केवल इसी दिन |
| परंपराएँ | शिवलिंग पूजा, उपवास, भजन, लोकगीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम |
| सरकारी महत्व | स्थानीय अवकाश, पुलिस और प्रशासन द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर |
| सांस्कृतिक पहचान | वीरता, त्याग और समाजिक एकता का प्रतीक |